राजस्थान में पहाड़ और पठार - भूगोलिक विशेषताएँ
राजस्थान में पहाड़ और पठार दोनों भू-आकृतियों का अद्वितीय संगम देखने को मिलता है। यहाँ के प्रमुख पहाड़ और पठार निम्नलिखित हैं:
1. अरावली पर्वत श्रृंखला
- यह राजस्थान की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखला है और भारतीय भूगर्भीय संरचना में इसका विशेष स्थान है।
- अरावली पर्वत उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम दिशा में राजस्थान के कई जिलों में फैला हुआ है।
- माउंट आबू (1,722 मीटर) अरावली का सबसे ऊँचा पर्वत है और राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन है।
अरावली भारत की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखला है, जिसका निर्माण लगभग 65 करोड़ साल पहले हुआ था। यह श्रृंखला उत्तर-पूर्व से दक्षिण-पश्चिम दिशा में लगभग 800 किमी तक फैली हुई है। अरावली का विस्तार दिल्ली से लेकर गुजरात के पालनपुर तक होता है, जिसमें राजस्थान का एक बड़ा हिस्सा आता है।
मुख्य विशेषताएँ:
भौगोलिक स्थिति:
- अरावली राजस्थान के पूर्वी और दक्षिणी भागों से होकर गुजरती है। यह श्रृंखला राजस्थान के अजमेर, अलवर, उदयपुर, सिरोही, और माउंट आबू जैसे प्रमुख स्थानों में फैली है।
- इसके उत्तर में दिल्ली के पास से शुरू होकर यह गुजरात में खत्म होती है।
सबसे ऊँचा शिखर:
- गुरु शिखर (1,722 मीटर) अरावली का सबसे ऊँचा शिखर है, जो माउंट आबू में स्थित है। माउंट आबू राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन है और धार्मिक एवं पर्यटन स्थल के रूप में प्रसिद्ध है।
भू-रचना:
- अरावली पर्वत श्रृंखला भूवैज्ञानिक दृष्टि से बहुत पुरानी है और इसमें ग्रेनाइट, मार्बल और स्लेट जैसे पत्थरों की अधिकता है।
- यहाँ की चट्टानें खनिज संपदा से भरपूर हैं, जिनमें जिंक, तांबा, और लेड प्रमुख हैं।
पर्यावरण और वनस्पति:
- अरावली में विविध प्रकार की वनस्पति पाई जाती है, जिसमें शुष्क पतझड़ी जंगल और कुछ भागों में हरियाली देखने को मिलती है। यह क्षेत्र जैव विविधता का प्रमुख केंद्र है।
- अरावली राजस्थान के मरुस्थलीय क्षेत्र को पश्चिम की ओर फैलने से रोकती है और जलवायु नियंत्रण में भी योगदान देती है।
महत्त्वपूर्ण स्थल:
- माउंट आबू: यह एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है, जहाँ दिलवाड़ा जैन मंदिर, नक्की झील, और गुरु शिखर जैसे आकर्षण स्थित हैं।
- सरिस्का और रणथंभौर: अरावली की तलहटी में स्थित ये वन्यजीव अभ्यारण्य बाघों और अन्य जंगली जानवरों के लिए प्रसिद्ध हैं।
पर्यावरणीय संकट:
- पिछले कुछ दशकों में अरावली की पर्वत श्रृंखला पर्यावरणीय खनन, अतिक्रमण, और वन कटाई जैसी समस्याओं का सामना कर रही है। इसके कारण इस क्षेत्र की पर्यावरणीय स्थिति पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
2. थार मरुस्थल
- राजस्थान का पश्चिमी भाग थार मरुस्थल के रूप में प्रसिद्ध है, जिसे 'ग्रेट इंडियन डेजर्ट' भी कहा जाता है।
- इस क्षेत्र में छोटे-छोटे पहाड़ी टीले और पठारीय भूभाग देखने को मिलते हैं, जो रेगिस्तानी परिदृश्य का हिस्सा हैं।
थार मरुस्थल जिसे "ग्रेट इंडियन डेजर्ट" भी कहा जाता है, भारत के उत्तर-पश्चिमी भाग में स्थित एक विशाल रेगिस्तानी क्षेत्र है। इसका अधिकांश भाग राजस्थान में फैला हुआ है, और यह दुनिया के सबसे बड़े मरुस्थलों में से एक है। थार मरुस्थल लगभग 2,00,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है।
मुख्य विशेषताएँ:
भौगोलिक स्थिति:
- थार मरुस्थल पश्चिमी राजस्थान के अधिकांश हिस्से में फैला हुआ है। यह उत्तर-पश्चिम में पाकिस्तान की सीमा तक और दक्षिण में गुजरात के कुछ हिस्सों तक फैला है।
- थार के प्रमुख जिले जैसलमेर, बाड़मेर, बीकानेर, जोधपुर, और नागौर हैं। पश्चिमी सीमा पर यह पाकिस्तान के सिंध और पंजाब क्षेत्रों से मिलता है।
जलवायु:
- थार मरुस्थल की जलवायु अत्यंत शुष्क होती है, जिसमें वर्ष भर बहुत ही कम वर्षा होती है। यहां की वार्षिक वर्षा 100 से 500 मिमी के बीच होती है, जो बहुत असमान होती है।
- ग्रीष्म ऋतु में तापमान 50°C तक पहुँच सकता है, जबकि सर्दियों में रात का तापमान 0°C तक गिर सकता है।
भूमि संरचना:
- थार की भूमि में रेतीले टीले, नमक के मैदान, और चट्टानें पाई जाती हैं। यहाँ रेत के ऊँचे-ऊँचे टीले (dunes) दिखाई देते हैं, जो तेज हवाओं के कारण समय-समय पर अपनी जगह बदलते रहते हैं।
- यहाँ की मिट्टी रेतीली होती है, जिसमें जल की धारण क्षमता बहुत कम होती है।
वनस्पति और जीव:
- थार मरुस्थल में शुष्क और कठोर परिस्थितियों के बावजूद यहाँ कुछ खास किस्म की वनस्पतियाँ जैसे कैक्टस, कंज, बेर, खेजड़ी, और बबूल के पेड़ पाए जाते हैं।
- यहाँ वन्यजीवन में ब्लैक बक, चिंकारा, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, लोमड़ी, और मरुस्थलीय बिल्ली जैसे जीव-जंतु शामिल हैं।
- थार में पाए जाने वाले ग्रेट इंडियन बस्टर्ड (गोडावण) को संरक्षित जीवों की श्रेणी में रखा गया है।
जलस्रोत:
- थार मरुस्थल में पानी के स्रोत बहुत सीमित हैं। कुछ क्षेत्रों में कृत्रिम झीलें और नहरें (जैसे इंदिरा गांधी नहर) बनाई गई हैं, ताकि कृषि और मानव जीवन को मदद मिल सके।
- थार का प्रमुख जल स्रोत बारिश है, और यहाँ के लोग वर्षा जल संचयन के तरीकों का उपयोग करते हैं।
मानव जीवन और संस्कृति:
- थार मरुस्थल के लोग कठोर जलवायु में भी अपने पारंपरिक जीवन को बनाए रखते हैं। यहाँ के लोग मुख्यतः गडरिया (चरवाहा) और कृषि आधारित होते हैं।
- राजस्थान का यह क्षेत्र अपनी रंगीन संस्कृति, लोक संगीत, नृत्य, और हस्तशिल्प के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ के प्रमुख त्योहारों में पुष्कर मेला और जैसलमेर का मरु महोत्सव शामिल हैं।
- यहाँ के वास्तुशिल्पीय धरोहर में जैसलमेर किला और बाड़मेर के प्राचीन मंदिर शामिल हैं।
पर्यावरणीय चुनौतियाँ:
- थार में भूमि का क्षरण, मरुस्थलीकरण, और पानी की कमी जैसी समस्याएँ बढ़ रही हैं। यहाँ की पारिस्थितिकी तंत्र को संरक्षित करने के लिए विभिन्न परियोजनाएँ चलाई जा रही हैं, जैसे वृक्षारोपण और जल संरक्षण।
- इंदिरा गांधी नहर जैसी परियोजनाएँ इस क्षेत्र की जल समस्या को कम करने के लिए चल रही हैं।
महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल:
- जैसलमेर:
- जैसलमेर को "स्वर्ण नगरी" के नाम से जाना जाता है, जो अपने पीले बलुआ पत्थरों से बने किले, हवेलियों, और रेगिस्तानी सफारी के लिए प्रसिद्ध है।
- सैम और खुरसाना के रेत के टीले:
- ये रेत के ऊँचे टीले पर्यटकों के बीच रेगिस्तानी सफारी और कैमल राइड के लिए प्रसिद्ध हैं।
3. मालवा पठार
- राजस्थान का दक्षिण-पूर्वी भाग मालवा पठार के हिस्से में आता है। यह क्षेत्र मुख्यतः झालावाड़, कोटा और बूंदी जिलों में विस्तारित है।
- यह क्षेत्र कृषि और खनिज संसाधनों के लिए महत्वपूर्ण है।
मालवा पठार भारत के मध्य भाग में स्थित एक महत्वपूर्ण पठारी क्षेत्र है, जो मध्य प्रदेश और राजस्थान के कुछ हिस्सों में फैला हुआ है। यह क्षेत्र अपनी विशिष्ट भू-आकृति, ऐतिहासिक महत्व, और उपजाऊ मिट्टी के लिए जाना जाता है। मालवा पठार पश्चिमी मध्य प्रदेश और दक्षिण-पूर्वी राजस्थान में विस्तारित है।
मुख्य विशेषताएँ:
भौगोलिक स्थिति:
- मालवा पठार मुख्य रूप से मध्य प्रदेश के पश्चिमी भाग और राजस्थान के दक्षिण-पूर्वी हिस्से में फैला हुआ है। राजस्थान के झालावाड़, कोटा, और बूंदी जिले मालवा पठार का हिस्सा माने जाते हैं।
- यह विंध्याचल पर्वत श्रृंखला के उत्तर में स्थित है और इसके पश्चिम में अरावली पर्वत श्रृंखला है।
उपजाऊ मिट्टी:
- मालवा पठार की मिट्टी मुख्य रूप से काली मिट्टी (रेगुर मिट्टी) है, जो ज्वालामुखीय चट्टानों के विघटन से बनी है। यह मिट्टी कपास, गन्ना, और सोयाबीन जैसी फसलों के लिए उपयुक्त है।
- इस क्षेत्र की जलवायु और उपजाऊ मिट्टी इसे एक महत्वपूर्ण कृषि क्षेत्र बनाती है, जहाँ विशेष रूप से सोयाबीन, मक्का, और गेहूं की खेती की जाती है।
नदियाँ:
- मालवा पठार से कई महत्वपूर्ण नदियाँ निकलती हैं, जिनमें चंबल, शिप्रा, और काली सिंध प्रमुख हैं। चंबल नदी राजस्थान और मध्य प्रदेश के बीच एक प्रमुख जलस्रोत है और इसका उपयोग सिंचाई के लिए किया जाता है।
- नर्मदा नदी मालवा पठार के दक्षिणी हिस्से से होकर गुजरती है और क्षेत्र की कृषि को पानी प्रदान करती है।
वनस्पति और जीव:
- मालवा पठार में शुष्क पर्णपाती जंगल पाए जाते हैं, जिनमें साल, टीक, और बबूल के पेड़ प्रमुख हैं। यहाँ का वन क्षेत्र अपेक्षाकृत कम है, लेकिन कृषि और प्राकृतिक संसाधनों की अधिकता के कारण यहाँ हरियाली देखने को मिलती है।
- जीव-जंतु के रूप में यहाँ हिरण, सियार, जंगली सूअर, और विभिन्न प्रकार के पक्षी पाए जाते हैं।
भूगर्भीय संरचना:
- मालवा पठार का निर्माण प्राचीन ज्वालामुखीय गतिविधियों के कारण हुआ था। यहाँ की चट्टानें बेसाल्ट से बनी हैं, जो लावा से ठंडी होकर बनी थी।
- इस क्षेत्र की चट्टानों में ज्वालामुखीय गतिविधियों के संकेत मिलते हैं, और इस वजह से यहाँ की मिट्टी काली होती है, जो बहुत उपजाऊ मानी जाती है।
ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्त्व:
- मालवा पठार का ऐतिहासिक महत्त्व बहुत बड़ा है। यह क्षेत्र प्राचीन काल से मालवा साम्राज्य और कई अन्य राजवंशों का हिस्सा रहा है। यहाँ उज्जैन जैसे ऐतिहासिक शहर स्थित हैं, जो भारत के प्रमुख सांस्कृतिक और धार्मिक केंद्रों में से एक हैं।
- उज्जैन, जो मालवा पठार पर स्थित है, हिंदू धर्म में एक पवित्र नगर है और यहाँ महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग स्थित है, जो 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
- यहाँ की संस्कृति में मालवी बोली और शास्त्रीय संगीत की विशेष छाप देखने को मिलती है।
पर्यावरणीय चुनौतियाँ:
- मालवा पठार भी अन्य क्षेत्रों की तरह पर्यावरणीय समस्याओं से जूझ रहा है, जैसे जलवायु परिवर्तन, जल की कमी, और कृषि भूमि का अत्यधिक दोहन।
- जल संरक्षण के लिए यहाँ पर कई परियोजनाएँ चलाई जा रही हैं, ताकि जलवायु परिवर्तन से होने वाले प्रभावों को नियंत्रित किया जा सके।
पर्यटन और प्रमुख स्थल:
- उज्जैन:
- उज्जैन मालवा पठार का एक महत्वपूर्ण शहर है, जो अपने ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यहाँ महाकालेश्वर मंदिर और कुम्भ मेला का आयोजन होता है, जो इसे एक प्रमुख तीर्थ स्थल बनाते हैं।
- मांडू:
- मांडू एक ऐतिहासिक नगर है, जो अपने प्राचीन किलों और महलों के लिए प्रसिद्ध है। यह मध्यकालीन स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता है और पर्यटकों के बीच लोकप्रिय है।
4. विंध्याचल पर्वत श्रृंखला
- राजस्थान के दक्षिण-पूर्वी हिस्से में विंध्याचल पर्वत श्रृंखला फैली हुई है। यह मुख्यतः झालावाड़ और उसके आसपास के क्षेत्रों में देखने को मिलती है।
- यह श्रृंखला भी अपने खनिज संपदा और वनस्पति के लिए जानी जाती है।
विंध्याचल पर्वत श्रृंखला मध्य भारत की एक महत्वपूर्ण पर्वत श्रृंखला है, जो उत्तर और दक्षिण भारत को भौगोलिक रूप से विभाजित करती है। इस श्रृंखला का ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व भी है। विंध्याचल पर्वत श्रृंखला मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, और राजस्थान के कुछ हिस्सों में फैली हुई है।
मुख्य विशेषताएँ:
भौगोलिक स्थिति:
- विंध्याचल पर्वत श्रृंखला भारत के मध्य भाग में स्थित है। यह राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, और बिहार तक फैली हुई है।
- यह श्रृंखला उत्तर में गंगा के मैदान और दक्षिण में नर्मदा नदी के बीच की सीमा तय करती है। नर्मदा नदी विंध्याचल और सतपुड़ा पर्वत श्रृंखलाओं के बीच बहती है।
भूगर्भीय संरचना:
- विंध्याचल पर्वत श्रृंखला पुरानी तलछटी चट्टानों से बनी है, जिनमें बलुआ पत्थर और शेल की प्रमुखता है।
- यह श्रृंखला अन्य पर्वत श्रंखलाओं के मुकाबले ऊँचाई में बहुत ज्यादा नहीं है। इसकी औसत ऊँचाई 300 से 600 मीटर तक है।
- यहाँ की पहाड़ियों का ढाल सामान्यतः समतल है और ऊँचाई में धीरे-धीरे गिरावट होती है।
महत्त्वपूर्ण स्थल:
- विंध्याचल: उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में स्थित विंध्याचल पर्वत धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। यहाँ माँ विंध्यवासिनी देवी का मंदिर स्थित है, जो श्रद्धालुओं के लिए एक प्रमुख तीर्थ स्थल है।
- चुनार किला: यह मध्य प्रदेश के पास स्थित एक प्राचीन किला है, जो विंध्याचल श्रृंखला के किनारे पर स्थित है और इसका ऐतिहासिक महत्व है।
नदियाँ:
- विंध्याचल पर्वत श्रृंखला कई महत्वपूर्ण नदियों का स्रोत है। इसमें प्रमुख नदियाँ चंबल, बेतवा, केन, और सोन हैं।
- यह पर्वत श्रृंखला गंगा और नर्मदा नदी के बीच की जल विभाजक रेखा के रूप में कार्य करती है।
वनस्पति और जीव:
- विंध्याचल श्रृंखला में शुष्क पर्णपाती जंगल पाए जाते हैं। यहाँ साल, टीक, पलाश, और बबूल के पेड़ अधिकता से पाए जाते हैं।
- इस क्षेत्र में तेंदुआ, चीतल, जंगली सूअर, और कई प्रकार के पक्षी भी पाए जाते हैं। यहाँ की प्राकृतिक विविधता इसे एक महत्वपूर्ण जैवमंडलीय क्षेत्र बनाती है।
ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्त्व:
- विंध्याचल पर्वत श्रृंखला का पौराणिक और धार्मिक महत्त्व भी है। भारतीय महाकाव्यों में इस श्रृंखला का कई बार उल्लेख हुआ है।
- रामायण और महाभारत में विंध्याचल पर्वत का उल्लेख मिलता है, जहाँ इसे उत्तर और दक्षिण भारत को विभाजित करने वाले पर्वत के रूप में दर्शाया गया है।
- ऐतिहासिक रूप से यह क्षेत्र मौर्य, गुप्त और मुगल साम्राज्य के समय में रणनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा है।
पर्यावरणीय चुनौतियाँ:
- विंध्याचल पर्वत श्रृंखला की वनस्पति और पारिस्थितिकी को वन कटाई, खनन, और अन्य मानवजनित गतिविधियों से नुकसान पहुँच रहा है। यहाँ की जैव विविधता को संरक्षित करने के लिए सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं।
महत्त्वपूर्ण पर्यटन स्थल:
विंध्यवासिनी मंदिर:
- यह मंदिर मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश में स्थित है और माँ विंध्यवासिनी देवी को समर्पित है। यहाँ हर साल हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं।
चुनार किला:
- यह किला उत्तर प्रदेश में विंध्याचल पर्वत श्रृंखला के किनारे पर स्थित है और ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। इसे मौर्य, शुंग और मुगल शासकों द्वारा विभिन्न समयों में संरक्षित किया गया।
पन्ना राष्ट्रीय उद्यान:
- यह उद्यान विंध्याचल के पास स्थित है और यहाँ बाघों और अन्य वन्यजीवों का संरक्षण किया जाता है। पन्ना राष्ट्रीय उद्यान प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है।
विंध्याचल का सांस्कृतिक महत्त्व:
- विंध्याचल श्रृंखला भारतीय पौराणिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है, जहाँ इसे देवताओं और असुरों के युद्ध, संतों के तप, और ऋषियों के निवास के स्थान के रूप में दर्शाया गया है।
विंध्याचल पर्वत श्रृंखला अपनी भूगर्भीय संरचना, सांस्कृतिक धरोहर, और पर्यावरणीय विविधता के कारण भारत का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है।
इन पहाड़ों और पठारों की भौगोलिक संरचना राजस्थान को विविध प्राकृतिक सौंदर्य प्रदान करती है, जिसमें हरे-भरे पहाड़, शुष्क रेगिस्तान, और खनिज संपदा से भरपूर पठारी क्षेत्र शामिल हैं।
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